देवभूमि में पानी का सैलाब कुछ इस कदर उमड़ा कि देखते ही देखते करीब दो सौ लोग लापता हो गए. इस आपदा की कहानी में लखीमपुर का दर्द भी शामिल है. यहां ऐसे कई परिवार हैं, जिनके अपने इस इस जल प्रलय के बाद से लापता हैं. हादसे के बाद से इनके परिवारों का बुरा हाल है. यहां से 34 लोग लापता हैं. सेना और दूसरी सुरक्षा एजेंसियों के रेस्क्यू ऑपरेशन से इनके दिल में उम्मीदें तो हैं, लेकिन उत्तराखंड से आने वाली हर बुरी खबर अनहोनी की आशंका को बल दे देती है. यहां निघासन तहसील के इच्छानगर, भैरमपुर और बाबूपुरवा गांवों में अब सिर्फ आंसू, दर्द और चीखें ही देखने को मिल रही हैं.
श्री कृष्ण, राजू, जगदीश, उमेश, मुकेश, रामतीर्थ, इरशाद, प्रमोद, सूरज, हीरालाल, विमिलेश, ऐसे दर्जनों नाम हैं, जो अपना घर-बार छोड़कर इस आस में तपोवन के पावर प्रोजेक्ट में काम करने गए थे कि चार पैसे घर में आएंगे तो दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त हो जाएगा. बाबूपुरवा गांव में थारू समाज के लोग उत्तराखंड में ही मजदूरी का काम करते हैं. इस गांव के 6 लोग ऋषि गंगा पावर प्लांट में मजदूरी का काम करने गए थे. इनमें से एक विमल की खबर तो आ गई, लेकिन बाकी 5 का कोई पता नहीं है.